Manu Smriti
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इच्छयान्योन्यसंयोगः कन्यायाश्च वरस्य च ।गान्धर्वः स तु विज्ञेयो मैथुन्यः कामसंभवः 3/32

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वर और कन्या परस्पर स्वेच्छापूर्वक जो संयोग करें वह गान्धर्व विवाह कहलाता है। यह विवाह भोग के अर्थ है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
वर और कन्या की इच्छा से दोनों का संयोग होना और अपने मन में यह मान लेना कि हम दोनों का संयोग होना और अपने मन में यह मान लेना कि हम दोनों स्त्री - पुरूष हैं यह काम से हुआ वह ‘गान्धर्व विवाह’ कहाता है । (सं० वि० विवाह सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(६) इच्छा से कन्या और वर का परस्पर में संयोग हो जाना गन्धर्व है। परन्तु इसे कामवासना से उत्पन्न संभोगजन्य सम्बन्ध समझना चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(इच्छया अन्यः + अन्यसंयोगः) इच्छा से एक दूसरे का मिलाप (कन्यायाश्च वरस्य च) कन्या का और वर का (गान्धर्वः स तु विज्ञेयः) गान्धर्व विवाह समझना चाहिये (मैथुन्यः कामसंभवः) काम की आसक्ति के कारण मैथुन हो गया हो जिसमें ऐसा। अर्थात् यदि वर और कन्या काम के वश मैथुन करके परस्पर सम्बन्ध कर लें तो यह गन्धर्व विवाह हो।
 
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