Manu Smriti
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ज्ञातिभ्यो द्रविणं दत्त्वा कन्यायै चैव शक्तितः ।कन्याप्रदानं स्वाच्छन्द्यादासुरो धर्म उच्यते 3/31

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
कन्या अथवा कन्या की जाति वालों को धन देकर कन्या लेना आसुर विवाह कहलाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. वर की जाति वालों और कन्या को यथाशक्ति धन देके होम आदि विधि कर कन्या देना ‘आसुर विवाह’ कहाता है । (सं० वि० विवाह सं०)
टिप्पणी :
अपनी इच्छा से अर्थात् वर या कन्या की प्रसन्नता और इच्छा का ध्यान न रखके....................
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(५) वर के जाति-भाइयों और कन्या को यथाशक्ति धन देकर (दाज देकर) होम आदि विधि करके स्वेच्छापूर्वक कन्या का देना आसुर विवाह कहलाता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(ज्ञातिभ्यः द्रविणं दत्वा) रिश्तेदारों को धन देकर (कन्यायै च एव शक्तितः) और कन्या को भी शक्ति के अनुसार धन देकर (कन्याप्रदानं स्वाच्छन्द्यात्) अपनी इच्छा से कन्या दे देना (आसुरः धर्म उच्यते) आसुर विवाह कहलाता है।
 
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