Manu Smriti
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सहोभौ चरतां धर्मं इति वाचानुभाष्य च ।कन्याप्रदानं अभ्यर्च्य प्राजापत्यो विधिः स्मृतः 3/30

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वर और कन्या दोनों धर्म को करें यह बात कह कर वर कन्या की पूजा करके कन्या देवें, वह प्राजापत्य विवाह कहलाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
कन्या और वर को, यज्ञशाला में विधिकरके सब के सामने ‘तुम दोनों मिल के गृहाश्रम के कर्मों को यथावत् करो’ ऐसा कहकर दोनों की प्रसन्नता पूर्वक पाणिग्रहण होना वह ‘प्राजापत्य विवाह’ कहाता है । (सं० वि० विवाह सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(४) यज्ञशाला में विधि करके तत्पश्चात् सब के सामने ‘‘तुम दोनों वर-वधू इकट्ठे मिलके गृहाश्रम-धर्म का यथावत् पालन करो।’’ ऐसा भाषण करके सत्कारपूर्वक कन्या-दान करना प्राजापत्य विवाह कहलाता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(सह उभौ चरतां धर्मम्) तुम दोनों धर्म का आचरण करो। (इति वाचा अनुभाष्य च) ऐसा वाणी से कहकर (कन्या प्रदानम् अभ्यच्र्य) सत्कार करके कन्यादान करना (प्राजापत्यः विधिः स्मृतः) प्राजापत्य विधि कहलाती है।
 
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