Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
एक गाय बैल का जोड़ा अथवा दो जोड़े वर से लेके धर्मपूर्वक कन्यादान करना वह ‘आर्ष विवाह’ ।
(सं० वि० विवाह सं०)
टिप्पणी :
यज्ञादि विधि को करके...........................
कहाता है -
‘‘वर से कुछ लेके विवाह होना आर्ष’’
(विवाहके लक्षण, स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(३) एक या दो गाय-बैल के जोड़े कुलधर्मानुसार वर से लेकर विधिपूर्वक कन्या-दान करना आर्ष विवाह कहलाता है।१
टिप्पणी :
१. यह बात मिथ्या है। क्योंकि आगे मनुस्मृति में (३.३३) निषेध किया है और युक्तिविरुद्ध भी है। इस लिए कुछ भी न ले दे कर दोनों की प्रसन्नता से पाणिग्रहण होना आर्ष विवाह है। (सं० वि० विवाह प्रकरण)
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(एकं गोमिथुनम्) एक गाय और एक बैल (द्वे वा) या दो गाय और दो बैल (वरात् आदाय) वर से लेकर (धर्मतः) धर्म के अनुकूल (कन्या प्रदानं विधिवत्) विधि के अनुसार कन्यादान करना (आर्षः धर्मः स उच्यते) आर्ष धर्म कहलाता है।
टिप्पणी :
नोट-कुल्लूक भट का मत है कि वह गाय बैल यज्ञ के लिए लिये जाते हैं। पिता अपने लिये नहीं लेता।