Manu Smriti
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यज्ञे तु वितते सम्यगृत्विजे कर्म कुर्वते ।अलङ्कृत्य सुतादानं दैवं धर्मं प्रचक्षते 3/28

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यज्ञ में ऋत्विजों को अलंकार सहित कन्यादान देवे वह दैव विवाह कहलाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
विस्तृत यज्ञ में बडे़ - बड़े विद्वानों का वरण कर उसमें कर्म करने वाले विद्वान् को वस्त्र, आभूषण आदि से कन्या को सुशोभित कर के देना वह ‘दैव विवाह’ । (सं० वि० समावर्तन सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
) किसी विस्तृत यज्ञ में सम्यक्तया ऋत्विक् का काम करते हुए उस ऋत्विक् वर को, वस्त्र आभूषण आदि से सुशोभित कन्या के दान को दैव विवाह कहते हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यज्ञे तु वितते सम्यक्) ठीक रीति में यज्ञ रचाकर (ऋत्विजे कर्म कुर्वते) यज्ञ कराने वाले ऋत्विज को (अलंकृत्य) अलंकृत करके (सुतादानं) कन्यादान (दैवं धर्मं प्रचक्षते) दैव विवाह कहलाते हैं।
 
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