Manu Smriti
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आच्छाद्य चार्चयित्वा च श्रुतशीलवते स्वयम् ।आहूय दानं कन्याया ब्राह्मो धर्मः प्रकीर्तितः 3/27

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
(अब आठों लक्षण कहते हैं) वर और कन्या को वस्त्रालंकार देकर वर को बुलाकर कन्यादान देवें वह ब्रह्म विवाह कहलाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
कन्या के योग्य सुशील, विद्वान् पुरूष का सत्कार कर के कन्या को वस्त्रादि से अलंकृत करके उत्तम पुरूष को बुला अर्थात् जिसको कन्या ने प्रसन्न भी किया हो उसको कन्या देना वह ‘ब्राह्म विवाह’ कहाता है । (सं० वि० विवाह सं०)
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(आच्छाद्य च अर्चयित्वा च) वस्त्र देकर तथा आदर करके (श्रुति शीलवते) विद्वान् तथा शीलवान् पुरुष के लिये (स्वयम् आहूय) स्वयं बुलाकर (दानं कन्यायाः) कन्या का दान (ब्राह्मः धर्मः प्रकीर्तितः) ब्राह्म विवाह कहलाता है।
 
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