Manu Smriti
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यस्यास्तु न भवेद्भ्राता न विज्ञायेत वा पिता ।नोपयच्छेत तां प्राज्ञः पुत्रिकाधर्मशङ्कया 3/11
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस कन्या के भ्राता न हों, जिसके पिता का नाम अज्ञात हो, ऐसी कन्या को न वरें, क्योंकि पुत्रिका धर्म की शंका रहेगी। पिता विवाह समय यह अभिलाषा रहे कि कन्या का पुत्र मेरा होगा उसको पुत्रिका करण कहते हैं, अतः वह बालक (पुत्र) नाना का पुत्र होगा।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यास्याः तु न भवेत् भ्राता) जिसके कोई भाई न हो (न विज्ञायेत वा पिता) या जिसके पिता का पता न लगे। (न उपयच्छेत् तां प्राज्ञः) बुद्धिमान् उसके साथ विवाह न करें (पुत्रिका-धर्म-शंकया) पुत्रिका धर्म के डर से।
टिप्पणी :
पुत्रिका धर्म इसको कहते हैं कि यदि किसी के लड़का न हो और केवल लड़की हो तो उस लड़की का लड़का अर्थात् धेवता गोद लिया जा सकता है और वह नाना की जायदाद का मालिक होता है। जिस स्त्री के भाई नहीं उससे कुल के किसी शारीरिक रोग का पता चलता है। ऐसी स्त्री से विवाह करने में ऐसे रोग के अपने कुल में आने का भय है। और यदि पुत्र उत्पन्न हुआ भी तो वह नाना के घर चला जायगा। यह हानि है।
 
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