Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो कन्या माता के सपिण्ड में न हो और पिता के गोत्र में न हो ऐसी कन्या तीनों वर्णों को भार्या बनाने के हेतु अच्छी है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो स्त्री माता की छह पीढ़ी और पिता के गोत्र की न हो वही द्विजों के लिए विवाह करने में उत्तम है ।
(सं० वि० विवाह सं०)
टिप्पणी :
‘‘जो कन्या माता के कुछ की छः पीढ़ियों में न हो और पिता के गोत्र की न हो उस कन्या से विवाह करना उचित है ।’’
(स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
‘विवाह सम्बन्धी गठजोड़े में’ यह ‘दारकर्मणि मैथुने’ का शब्दार्थ है।
जो कन्या माता की छः पीड़ी और पिता के गोत्र की न हो, वह द्विजों के विवाह में प्रशस्त है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(असपिण्डा च या मातुः) जो माता की सपिंड न हो अर्थात् उसकी सात पीढ़ी न हो (असगोत्रा च या पितुः) और जो पिता के गोत्र की न हो (सा प्रशस्ता द्विजातीनाम्) द्विजों में वही स्त्री ठीक है (दारकर्मणि मैथुने) सन्तानोत्पत्ति के निमित्त विवाह में।