Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गुरु आज्ञा से यथा विधि (स्नानादि करके) समावर्तन संस्कार करें। और उसके पश्चात् अपने वर्ण के समान लक्षणों युक्त कन्या से विवाह करे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यथावत् उत्तम रीति से ब्रह्मचर्य और विद्या को ग्रहण कर गुरू की आज्ञा से स्नान करके ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य अपने वर्ण की उत्तम लक्षण युक्त स्त्री से विवाह करे ।
(सं० वि० विवाह सं०)
टिप्पणी :
‘‘गुरू की आज्ञा से स्नान कर गुरूकुल से अनुक्रम पूर्वक आके ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अपने वर्णानुकूल सुन्दरलक्षण युक्त कन्या से विवाह करे ।’’
(स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
गुरु की आज्ञा से स्नान कर और विधिपूर्वक गुरुकुल से आके (गुरुकुल से लौटने का समावर्तन संस्कार कराके) ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अपने वर्णानुकूल सुन्दर लक्षणयुक्त कन्या से विवाह करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(गुरुणा अनुमतः) गुरु की आज्ञा लेकर (स्नात्वा) स्नानतक बनकर (सम + आवृतः यथाविधि) विधिपूर्वक समावत्र्तन संस्कार करके (उद्वहेत् द्विजः) द्विज विवाहे (भार्यां सवर्णां लक्षण + अनु + इताम्) अच्छे लक्षण वाली स्त्री को जो अपने गुण, कर्म तथा स्वभाव में मिलती हो।