Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
तीनों विद्या, दो वेद विद्या, एक वेद क्रम से पढ़कर अखण्ड व्रती मनुष्य गृहस्थाश्रम में आये। क्योंकि बिना वेदाध्ययन किए और ब्रह्मचर्याश्रम के गृहस्थाश्रम नहीं कहला सकता।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
ब्रह्मचर्य से चार, तीन, दो अथवा एक वेद को यथावत् पढ़ अखण्डित ब्रह्मचर्य का पालन करके गृहाश्रम को धारण करे ।
(सं० वि० विवाह सं०)
टिप्पणी :
‘‘जब यथावत् ब्रह्मचर्य आचार्यनुकूल वत्र्तकर धर्म से चारों, तीन वा दो अथवा एक वेद को सांगोपांग पढ़के जिसका ब्रह्मचर्य खण्डित न हुआ हो वह पुरूष वा स्त्री गृहाश्रम में प्रवेश करे ।’’
(स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
गुरुकुल में क्रमशः सब वेदों, या दो वेदों, या एक वेद को साङ्गोपाङ्ग पढ़ कर अखण्डित ब्रह्मचर्य वाला ब्रह्मचारी गृहाश्रम में प्रवेश करे।१
टिप्पणी :
१. यह समस्त प्रकरण स० स० ४ और सं० वि० विवाह तथा गृहाश्रम प्रकरण में देखें।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(वेदान् अधीत्य) सब वेदों को पढ़कर (वेदौ वा) या दो वेदों को (वेदं वा अपि) या एक ही वेद को (यथाक्रमम्) क्रमपूर्वक (अविलुप्त ब्रह्मचर्यः) ब्रह्मचर्य का नाश बिना किये (गृहस्थ + आश्रमम् आवसेत्) गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करें। अर्थात् जब तक कम से कम एक वेद न पढ़ लें विवाह न करें।