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षट्त्रिंशदाब्दिकं चर्यं गुरौ त्रैवेदिकं व्रतम् ।तदर्धिकं पादिकं वा ग्रहणान्तिकं एव वा 3/1

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
छत्तीस, व अठारह वा नौ वर्ष पर्यन्त तीनों वेदों के अध्ययनार्थ व्रत (इच्छा) से कार्य करना चाहिये। यहाँ पर तीनों वेदों के अर्थ कर्म, उपासना, ज्ञान भी बहुत से विद्वान लेते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. गुरू के समीप रहते हुए ब्रह्मचारी को ज्ञान, कर्म, उपासना रूप त्रिविध ज्ञान वाले वेदों के अध्ययन सम्बन्धी ब्रह्मचर्य व्रत का छत्तीस वर्ष पर्यन्त उससे आवे अर्थात् अठारह वर्ष पर्यन्त अथवा उन छत्तीस के चौथे भाग अर्थात् नौ वर्ष पर्यन्त अथवा जब तक विद्या पूरी न हो जाये तब तक पालन करना चाहिये ।
टिप्पणी :
‘‘आठवें वर्ष से आगे छत्तीसवें वर्ष पर्यन्त अर्थात् वेद के सागोंपांग पढ़ने में बारह - बारह वर्ष मिल के छत्तीस और आठ मिल के चवालीस अथवा अठारह वर्षों का ब्रह्मचर्य और आठ पूर्व के मिल के छब्बीस वा नौ वर्ष तथा जब तक विद्या पूरी ग्रहण न कर लेवे तब तक ब्रह्मचर्य रक्खे ।’’ (स० प्र० तृतीय समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
ब्रह्मचारी तीनों वेदों को पढ़ने के लिए गुरुकुल में ३६ वर्ष के ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन करे। अथवा, उससे आधा १८ वर्ष का, अथवा चौथाई ९ वर्ष का, अथवा जब तक वेद ग्रहण न कर सके तब तक ब्रह्मचर्य का पालन करे।१
टिप्पणी :
ब्रह्मचर्य का उपर्युक्त काल ब्राह्मण ब्रह्मचारी की द्ष्टि से दिया गया है। प्रथमाध्याय के २७वें श्लोक में ब्राह्मण के उपनयन का काल गर्भ से आठवां वर्ष है। अतः, ३६ वर्ष मिलाकर ४४ वर्ष का पहला, और ८ वर्ष में १८ मिलाने से ३६ वर्ष का दूसरा ब्रह्मचर्य हुआ। ९ वर्ष का ब्रह्मचर्य प्रथमाध्याय के २९ वें श्लोक के आधार पर उस ब्रह्मचारी का है जिसका उपनयन १६वें वर्ष हुआ हो। अतः, १६ में ९ मिलाने से २५ वर्ष का तीसरा ब्रह्मचर्य हुआ। ये तीनों ब्रह्मचर्य इसी अध्याय के अग्रिम श्लोक के अनुसार क्रमशः तीन वेद, दो वेद, या एक वेद पढ़ने के लिए नियत ळैं। (देखें स० स० ३)
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(षट् + त्रिशत् + आब्दिकम्) छत्तीस वर्ष का (चर्यं) होना चाहिये (गुरौ) गुरु के पास (त्रैवेदिकं व्रतम्) तीन वेदों वाला व्रत (तत् + अधिकम्) उसका आधा (पादिकं वा) या चैथाई। (ग्रहण-अन्तिकम् एव वा) या वेद का ग्रहण जब तक हो पावे। अर्थात् एक एक वेद के पढ़ने के लिये बारह वर्ष लगाना चाहिये। परन्तु ब्रह्मचारी की योग्यतानुसार कम या अधिक भी लग सकता है।
 
USER COMMENTS
Comment By: दर्शन योग महाविद्यालय रोजड गुजरात
हमने कुछ वर्ष पूर्व गुजराती में विशुद्ध मनुस्मृति प्रकाशित की थी । विद्वानों , धर्माचार्यों , संस्थाओं , हाईकोर्ट के न्यायाधीशों ,राजनेताओं को भेंट रूप प्रदान की थी । अब पुन: प्रकाशित करना चाहते हैं । क्या आप की ओर से हमें मनुस्मृति के श्लोकों की ओपन फाइल उपलब्ध हो जाएगी ? हम इस बार भव्य प्रकाशन करना चाहेंगे । आप की ओर से ओपन फाइल मिलने पर हमारा बहुत सारा परिश्रम बच जाएगा । दिनेश कुमार
Comment By: admin
नमस्ते जी हमे कोई आपति नहीं है आप यही कमेंट में आपका फोन नम्बर और ईमेल दीजिये और आपसे निवेदन था की हमें आपका वह गुजराती टिका उपलब्ध करवा दीजिये जिससे हम उसे इसी वेबसाइट डालकर जनमानस के लिए उपलब्ध करवाए
Comment By: Adv.Kamlesh Chandra
Good....
Comment By: Nitesh
Aati sundra
 
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