Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अर्थात् पृथ्वी, सोना, गऊ, अश्व, छतरी, जूता, आसन, अन्न, शाक, वस्त्र आदि प्रीति पूर्वक गुरु को देवे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
शिष्य यथाशक्ति क्षेत्रम् भूमि हिरण्यम् सोना गाम् गौ अश्वम् घोड़ा छत्र - उपानहम् आसनम् छाता, जूता, आसन धान्यम् अन्न वासांसि वस्त्र वा अथवा शाकम् शाक गुरवे गुरू के लिए प्रीतिम् आवहेत् प्रीति - पूर्वक दक्षिणा में दे ।