Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
धर्मज्ञाता ब्रह्मचारी विद्याध्ययन, पर्यनत गुरु सेवा के अतिरिक्त दूसरा उपकार गुरु का न करें, विद्याध्ययन समाप्त करने के पश्चात् समावर्तन के निमित्त स्नान कर गुरु आज्ञा ग्रहण कर यथा-शक्ति दक्षिणा (गुरु दक्षिणा) दें।
टिप्पणी :
समावर्तन अर्थात् पितृकुल में आने के हेतु विवाहादि।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
धर्म वित् विधि का ज्ञाता शिष्य स्नास्यन् तु स्नातक बनने समावर्तन कराने की इच्छा होने पर गुरूणा + आज्ञप्तः गुरू से आज्ञा प्राप्त करके शक्त्वा शक्ति के अनुसार गुर्वर्थम् गुरू के लिए आहरेत् दक्षिणा प्रदान करे पूर्वं गुरवे किंचित् न उपकुर्वीत् समावर्तन से पहले गुरू को दक्षिणा के रूप में कुछ न दे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(२०) शिष्टाचार-धर्म को जानने वाला ब्रह्मचारी समावर्तन से पहले गुरु को दक्षिणा न देवे अपितु स्नातक बनने पर गुरु की आज्ञानुसार यथाशक्ति गुरु-दक्षिणा प्रदान करे।