Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यदि गुरु के समीप अधिक वास करने का इच्छुक हो तो चतुरता से जीवन पर्यनत सेवा करता हुआ वास करे, परन्तु ब्राह्मण गुरु के समीप।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यदि तु यदि ब्रह्मचारी शिष्य गुरोः कुले गुरूकुल में आत्यन्तिकं वासं रोचयेत जीवन - पर्यन्त निवास करना चाहे तो आशरीर - विमोक्षणात् शरीर छूटने पर्यन्त एनम् अपने गुरू की युक्तः परिचरेत् प्रयत्नपूर्वक सेवा करे ।