Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
विप, बालक, शत्रु इन तीनों से क्रमानुसार अमृत, सुभाषण (प्रिय बोलना), सद्वृत्त (उत्तम रीति) और वाचन को लेना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. विषात् अपि अमृतं ग्राहयम् विष से भी अमृत का ग्रहण करना बालात् अपि सुभाषितम् बालक से भी उत्तम वचन को ले लेना (सं० वि० ८५)
टिप्पणी :
और अमिवात्, अपि सद् वृत्तम् वैरी से भी श्रेष्ठ आचरण सीख लेना चाहिए, तथा अमेध्यात् अपि कांच्चनम् अशुद्ध स्थान से भी स्वर्ण को प्राप्त कर लेना चाहिए ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि विषय से भी अमृत को ग्रहण करना, बालक से भी उत्तम वचन को लेना, शत्रु से भी सदाचार को सीखना और अपवित्र स्थान से भी सुवर्ण को लेना चाहिए।