Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
उत्तम विद्या श्रद्धा सहित नीच वंश से भी लेवें परम धर्म चाण्डाल से भी लेवें, और सुन्दर स्त्री को दुष्ट कुल से भी ले लेना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
शुभां विद्यां श्रद्दधानः उत्तम विद्या प्राप्ति की श्रद्धा करता हुआ पुरूष अवरात् अपि आददीत अपने से न्यून से भी विद्या पावे तो ग्रहण करे अन्त्यादपि परं धर्मम् नीच जाति से भी उत्तम धर्म का ग्रहण करे, और दुष्कुलात् अपि स्त्रीरत्नम् निंद्यकुल से भी स्त्रियों में उत्तम स्त्री का ग्रहण करे, यह नीति है ।
(सं० वि० वेदारम्भ संस्कार)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(१९) उत्तम विद्या की श्रद्धा करता हुआ पुरुष अपने से न्यून से भी विद्या पावे जो ग्रहण करे। नीच जाति से भी उत्तम धर्म का ग्रहण करे। और निन्दा कुल से भी उत्तम स्त्री का ग्रहण करें, यह नीति है। अतः ब्रह्मचारी ब्रह्मचर्य-सम्पन्न होकर कहीं न कहीं से उत्तम विद्या पढ़े, उत्तम धर्म सीखे, और ब्रह्मचर्य के अनन्तर गृहाश्रम में उत्तम स्त्री से विवाह करे।