Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
आचमन कर नित्य दोनों सन्ध्याओं में एकाग्र चित्त से उत्तम और पवित्र स्थान में यथाविधि गायत्री का जप करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. ब्रह्मचारी नित्यम् प्रतिदिन उभे संध्ये प्रातः और सांय दोनों संध्या - कालों में शुचै देशे शुद्ध स्थान में आचम्य आचमन करके प्रयतः प्रयत्न - पूर्वक समाहितः एकाग्र होकर जप्यं जपन् उपासीत गायत्री का जप करते हुए उपासना करे ।
टिप्पणी :
‘‘नित्य संध्योपासन.............................................के पूर्व शुद्ध जल का आचमन किया करे ।’’
(सं० वि० वेदारम्भ संस्कार)