Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. यः जो सूर्येण अभिनिर्मक्तः प्रमाद में सूर्य के अस्त हो जाने पर च और शयानः अभ्युदितः सोते - सोते सूर्य उदय होने पर प्रायश्चित्तम् अकुर्वाणः प्रायश्चित्त (१९५) नहीं करता है वह महता एनसा युक्तः स्यात् बड़े अपराध का भागी बनता है अर्थात् उसे बड़ा दोषी माना जायेगा, क्यों कि संध्याकालों में ब्रह्मचारी के लिये सबसे परमावश्यक कर्म संध्योपासन का विधान है और इस कर्म में प्रमाद करने से ब्रह्मचारी के पापों में फंसने का भय रहता है ।