Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यद्यपि ब्रह्मचारी मूँढ़ मुड़ाये, जटाधारी व चोटी को जटा के तुल्य बनाये हों तथापि कभी भी सूर्योदय वा सूर्यास्त समय ग्राम में न रहें अर्थात् ब्रह्मचारी यह दोनों समय शहर व ग्राम से बाहर व्यतीत करे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. ब्रह्मचारी मुण्डः वा जटिलः वा स्यात् चाहे तो सब केश मुंडवाकर रहे चाहे सब केश रखकर रहे अथवा या फिर शिखाजटः केवल शिखा रखकर शेष केश मुंडवाकर स्यात् रहे । एनम् इस ब्रह्मचारी को क्वचित् ग्रामे किसी स्थान में रहते सूर्यः सूर्य न अभिनिम्लोचेत् न तो अस्त हो न अभ्युदियात् न कभी उदय हो अर्थात् प्रमाद के कारण उसके निवास स्थान पर रहते - रहते सूर्य अस्त नहीं होना चाहिए और न ही सोते - सोते सूर्योदय होना चाहिए अपितु उससे पूर्व ही संध्योपासन आदि नित्यकर्मों के लिये वन - प्रदेश में निकल जाना चाहिए (२।७९,७८,७७,७६) ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(१७) ब्रह्मचारी चाहे मुण्ड हो, चाहे जटाधारी हो, और चाहे शिखा की जटा धारण करने वाला हो, वह कभी सूर्यास्त से लेकर सूर्योदय पर्यन्त के काल में ग्राम में न रहे।