Manu Smriti
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यथा खनन्खनित्रेण नरो वार्यधिगच्छति ।तथा गुरुगतां विद्यां शुश्रूषुरधिगच्छति ।2/218

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जैसे कुदाली से खोदते खोदते मनुष्य जल पाता है उसी प्रकार गुरु की सेवा-शुश्रूषा करते करते शिष्य गुरु की सम्पूर्ण विद्या को पाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यथा खनित्रेण खनन् नरः जैसे फावड़े से खोदता हुआ मनुष्य वारि अधिगच्छति जल को प्राप्त होता है तथा वैसे शुश्रूषुः गुरू की सेवा करने वाला पुरूष गुरूगतां विद्याम् गुरूजनों ने जो विद्या प्राप्त की है, उसको अधि - गच्छति प्राप्त होता है । (सं० वि० वेदारम्भ संस्कार)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(१६) जैसे फावड़े से खोदते खोदते मनुष्य किसी दिन धरती से जल निकाल लेता है, वैसे गुरु की सेवा करने वाला शिष्य गुरु की विद्या को किसी दिन पा जाता है। अतः ब्रह्मचारी को उपर्युक्त प्रकार से गुरु-सेवा अवश्य करनी चाहिये।
 
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