Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. शिष्य सतां धर्मम् अनुस्मरन् श्रेष्ठों के धर्म को स्मरण करते हुए अर्थात् यह विचारते हुए कि स्त्रियों को अभिवादन करना श्रेष्ठ - शिष्ट व्यक्तियों का कत्र्तव्य है गुरूदारेषु गुरूपत्नियों को अन्वहम् अभिवादनं कुर्वीत प्रति - दिन अभिवादन करे च और विप्रोष्य परदेश से लौटकर पादग्रहणम् चरणस्पर्श कर अभिवादन करे ।