Manu Smriti
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विप्रोष्य पादग्रहणं अन्वहं चाभिवादनम् ।गुरुदारेषु कुर्वीत सतां धर्मं अनुस्मरन् ।2/217

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यात्रा से आकर भले मनुष्यों के धर्म को स्मरण करके गुरुपत्नी के पांव पकड़ें और प्रणाम को नित्य ही करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. शिष्य सतां धर्मम् अनुस्मरन् श्रेष्ठों के धर्म को स्मरण करते हुए अर्थात् यह विचारते हुए कि स्त्रियों को अभिवादन करना श्रेष्ठ - शिष्ट व्यक्तियों का कत्र्तव्य है गुरूदारेषु गुरूपत्नियों को अन्वहम् अभिवादनं कुर्वीत प्रति - दिन अभिवादन करे च और विप्रोष्य परदेश से लौटकर पादग्रहणम् चरणस्पर्श कर अभिवादन करे ।
 
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