Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
कामं तु अच्छा तो यही है कि युवा युवक शिष्य युवतीनां गुरू - पत्नीनाम् जवान गुरूपत्नियों का असौ अहम् इति ब्रुवन् ‘यह मैं अमुक नाम वाला हूँ’ ऐसा कहते हुए विधिवत् पूर्ण विधि के अनुसार (२।९७,९९) (भुवि) भूमि पर झुककर ही वन्दनं कुर्यात् अभिवादन करे ।