Manu Smriti
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कामं तु गुरुपत्नीनां युवतीनां युवा भुवि ।विधिवद्वन्दनं कुर्यादसावहं इति ब्रुवन् ।2/216

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
युवा गुरुपत्नी को शिष्य विधिवत् (भली भांति) यह कह कर कि मैं अमुक हूँ पृथ्वी पर गिर कर दण्डवत् करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
कामं तु अच्छा तो यही है कि युवा युवक शिष्य युवतीनां गुरू - पत्नीनाम् जवान गुरूपत्नियों का असौ अहम् इति ब्रुवन् ‘यह मैं अमुक नाम वाला हूँ’ ऐसा कहते हुए विधिवत् पूर्ण विधि के अनुसार (२।९७,९९) (भुवि) भूमि पर झुककर ही वन्दनं कुर्यात् अभिवादन करे ।
 
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