Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
माता, भगिनी व कन्या इनके साथ जनशून्य घर (स्थान) में न रहें। क्योंकि इन्द्रियां बहुत बलवान् हैं-पण्डितों को भी कुमार्ग पर खींच ले जाती हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. मनुष्य को चाहिए कि मात्रा स्वस्त्रा वा दुहित्रा माता, बहन अथवा पुत्री के साथ भी विविक्त + आसनः न भवेत् एकान्त आसन पर न बैठे या न रहे, क्यों कि बलवान् इन्द्रियग्रामः शक्तिशाली इन्द्रियां विद्वांसम् अपि विद्वान् - विवेकी व्यक्ति को भी कर्षति खींचकर अपने वश में कर लेती हैं ।
टिप्पणी :
‘‘इस वाक्य का अर्थ - इन्द्रियाँ इतनी प्रबल हैं कि माता तथा बहनों के साथ रहने में भी सावधान रहना चाहिए ।’’
(पू० प्र० १५)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
मनुष्य कभी मां, बहिन या बेटी के साथ भी एकान्त में न बैठे, क्योंकि इन्द्रियें बड़ी बलवान् हैं और विद्वान् को भी अपनी ओर खींच लेती हैं। अतः ब्रह्मचारी को भी इस नियम का पालना करना चाहिए।