Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इह इस संसार में एषः स्वभावः यह स्वाभाविक ही है कि नारीणां नराणां दूषणम् स्त्री पुरूषों का परस्पर के संसर्ग से दूषण हो जाता है - दोष लग जाता है अतः अर्थात् इस कारण से विपश्चितः बुद्धिमान् व्यक्ति प्रमदासु स्त्रियों के साथ व्यवहारों में न प्रमाद्यन्ति कभी असावधानी नहीं करते ।