Manu Smriti
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विद्यागुरुष्वेवं एव नित्या वृत्तिः स्वयोनिषु ।प्रतिषेधत्सु चाधर्माद्धितं चोपदिशत्स्वपि ।2/206

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इसी प्रकार आचार्य के अतिरिक्त उपाध्याय आदि सम्बन्धी, अधर्म से रक्षा करने वाले, उत्तम-शिक्षा-दाता भी गुरु समान हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
विद्यागुरूषु विद्या पढ़ाने वाले सभी गुरूओं में स्वयोनिषु अपने वंश वाले सभी बड़ों में च और अधर्मात् प्रतिषेधत्सु उपदिशत्सु अपि अधर्म से हटाकर धर्म का उपदेश करने वालों में भी नित्या एतत् एव वृत्तिः सदैव यही ऊपर वर्णित बर्ताव करे ।
 
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