Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गुरु के गुरु को भी अपने गुरु का नाईं जानें और गुरु की आज्ञा के बिना अपने देश से आये हुए चचा आदि को प्रणाम न करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
गुरोः गुरौ सन्निहिते गुरू के भी गुरू यदि समीप आ जायें तो गुरूवत् वृत्तिम् आचरेत् उनसे अपने गुरू के समान ही आचरण करे च और स्वान् गुरून् अपने माता - पिता आदि गुरूजनों के आने पर गुरूणा अनिसृष्टः न अभिवादयेत् गुरू से आदेश पाये बिना अभिवादन न करे अर्थात् शिष्टता के नाते गुरू से पहले अनुमति लेकर उनके पास अभिवादन के लिए जाये ।