Manu Smriti
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गोऽश्वोष्ट्रयानप्रासाद प्रस्तरेषु कटेषु च ।आसीत गुरुणा सार्धं शिलाफलकनौषु च ।2/204

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
बैल, घोड़ा, ऊँट वाले रथ, गाड़ी पर अथवा चटाई, पत्थर, लकड़ी और नाव पर गुरु के साथ बैठें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. गो + अश्व + उष्ट्रयान - प्रासादप्रस्तरेषु बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी, ऊंटगाड़ी पर और महलों अथवा घरों में बिछाये जाने वाले बिछौनों पर च और कटेषु चटाईयों पर च तथा शिला - फलकनौषु पत्थर, तख्ता, नौका पर गुरूणा सार्धं आसीत गुरू के साथ बैठ जाये ।
 
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