Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो मनुष्य गुरु के देश से शिष्य के देश को आया हो अथवा शिष्य के देश से गुरु के देश को आया हो इन दोनों के सम्मुख शिष्य गुरु के साथ न रहें। जो बात गुरु के सुनने में न आवे ऐसी कोई बात गुरु की वा और किसी की न कहें अर्थात् गुरु से छिपा कर कोई बात न कहें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. प्रतिवाते गुरू की ओर से शिष्य की ओर आने वाली हवा में च और अनुवाते शिष्य की ओर से गुरू की ओर जाने वाली हवा में गुरूणा सह न आसीत शिष्य गुरू के साथ न बैठे (च) तथा गुरोः असंश्रवे एव जहां गुरू को अच्छी प्रकार न सुनाई पड़े ऐसे स्थान में किंचित् अपि न कीत्र्तयेत् कुछ बात न करे ।