Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गुरु की पूजा दूर से (अर्थात् किसी के द्वारा सामिग्री भेजकर) न करें और क्रोध भी न करें। यदि अपनी स्त्री के समीप बैठा हो वा सवारी या आसन पर बैठा हो तो सवारी से उतर कर वा आसन को त्याग कर वा स्त्री के समीप से उठ कर प्रणाम करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. एनम् शिष्य अपने गुरू को दूरस्थः दूर से न अर्चयेत् नमस्कार न करे न क्रुद्धः न क्रोध में न स्त्रियाः अन्ति के जब अपनी स्त्री के पास बैठे हों न उस स्थिति में जाकर अभिवादन करे च और यान + आसनस्थः यदि सवारी में बैठा हो तो अवरूह्य उतरकर एनम् अपने गुरू को अभिवादयेत् अभिवादन करे ।