Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गुरु के पीछे भी केवल उनके नाम को न ले और गुरु की जैसी चाल, ढाल, बोली, चेष्ठा हो वैसी अपनी न रक्खें। वरन् गुरु की आज्ञा पालन करें, उनकी चाल की (रीति की) नकल न करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
परोक्षम् अपि पीछे से भी अस्य अपने गुरू का केवलं नाम न उदाहरेत् केवल नाम न ले अर्थात् जब भी गुरू के नाम का उच्चारण करना पड़े तो ‘आचार्य’ ‘गुरू’ आदि सम्मानबोधक शब्दों के साथ करना चाहिए, अकेला नाम नहीं च और अस्य इस गुरू की गति + भाषित + चेष्टितम् चाल, वाणी तथा चेष्टाओं का न अनुकुर्वीत अनुकरण - नकल न करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(१२) गुरु का केवल नाम उनके पीछे भी न लेवे और न उनके चलने, बोलने व चेष्टित की नकल करे।