Manu Smriti
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नीचं शय्यासनं चास्य नित्यं स्याद्गुरुसन्निधौ ।गुरोस्तु चक्षुर्विषये न यथेष्टासनो भवेत् ।2/198

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गुरु के समीप अपना शय्यासन नीचा रक्खे अपने इच्छानुसार न रक्खे। क्योंकि ऐसा न करने से गुरु का अपमान होता है और विद्या नहीं आती।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
गुरूसन्निधौ गुरू के समीप रहते हुए अस्य इस ब्रह्मचारी का शय्या + आसनम् बिस्तर और आसन सर्वदा सदा ही नीचम् नीचा या सामान्य रहना चाहिए गुरोः तु चक्षुः विषये और गुरू की आंखों के सामने यथेष्टासनः न भवेत् कभी मनमाने आसन से न बैठे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(११) गुरु के समीप शिष्य की शय्या और आसन सदा नीचा रहना चाहिए और गुरु के समक्ष मनमाने ढंग से न बैठे।
 
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