Manu Smriti
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पराङ्मुखस्याभिमुखो दूरस्थस्यैत्य चान्तिकम् ।प्रणम्य तु शयानस्य निदेशे चैव तिष्ठतः ।2/197

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गुरु मुख फेरे खड़े हों तो सम्मुख जाकर, दृश्य हों तो समीप जाकर, और सोते हों तो प्रणाम करके गुरु आदेश (आज्ञा) को सुनें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
पराड्मुखस्य अभिमुखः गुरू यदि मुंह फेरे हों तो उनके सामने होकर च और दूरस्थस्य अन्तिकम् एत्य दूर खड़े हों तो पास जाकर शयानस्य तु लेटे हों च और निदेशे एव तिष्ठतः समीप ही खड़े हों तो प्रणम्य हाथ जोड़कर बातचीत करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
गुरु मुंह फेरे हों तो उनके सामने जाकर, दूरस्थ हों तो समीप जाकर, लेटे हुए हों तो प्रणाम करके, और समीप बैठे हों तो (प्रणम्य) सिर झुका कर उनकी आज्ञा का श्रवण और संभाषण करे।
 
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