Manu Smriti
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आसीनस्य स्थितः कुर्यादभिगच्छंस्तु तिष्ठतः ।प्रत्युद्गम्य त्वाव्रजतः पश्चाद्धावंस्तु धावतः ।2/196

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गुरु बैठें हों तो आप खड़ा होकर, गुरु खड़े हों तो आप चलकर, गुरु चलते हों तो आप सम्मुख जाकर और गुरु दौड़ते हों तो आप भी पीछे दौड़कर बात करें और सुनें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
आसीनस्य स्थितः बैठे हुए गुरू से खड़ा होकर तिष्ठतः तु अभिगच्छन् खड़े हुए गुरू के सामने जाकर आव्रजतः तु प्रति + उद्गम्य अपनी ओर आते हुए गुरू उसकी ओर शीघ्र आगे बढ़कर धावतः तु पश्चात् धावन् दौड़ते हुए के पीछे दौड़कर कुर्यात् प्रतिश्रवण और बातचीत (२।१७०) करे ।
 
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