Manu Smriti
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प्रतिश्रावणसंभाषे शयानो न समाचरेत् ।नासीनो न च भुञ्जानो न तिष्ठन्न पराङ्मुखः ।2/195

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सोता हुआ, आसन पर बैठा हुआ, भोजन करता हुआ और मुख फेरे हुए गुरु से बातचीत न करें और न सुनें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
प्रतिश्रवण + संभाषे प्रतिश्रवण अर्थात् गुरू की बात या आज्ञा का उत्तर देना, या स्वीकृति देना, और संभाषा - बातचीत, ये शयानः न समाचरेत् लेटे हुए न करे न आसीनः न बैठे - बैठे न भुञ्जानः न कुछ खाते हुए च और न तिष्ठन् न दूर खड़े होकर न पराड्मुखः न मुँह फेरकर ये बातें करें ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
आसन पर बैठे हुए गुरु आज्ञा देवें तो आप आसन से उठकर, गुरु खड़े हों तो आप समीप जाकर, गुरु अपनी ओर आ रहे हों तो आप उनकी ओर जाकर, और गुरु चलते-चलते आज्ञा देवें तो आप उनके पीछे-पीछे चकर आज्ञा का श्रवण और संभाषण करे।
 
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