Manu Smriti
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हीनान्नवस्त्रवेषः स्यात्सर्वदा गुरुसन्निधौ ।उत्तिष्ठेत्प्रथमं चास्य चरमं चैव संविशेत् ।2/194

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गुरु के समीप इस विधि से रहना चाहिए कि जैसा गुरु भोजन करे उससे हीन दशा का आप भोजन करें, जैसा वस्त्र गुरु पहिने उससे हीन (घटका) वस्त्र आप पहिने, जैसे वेष में गुरु रहे उससे हीन वेष में आप रहें, और गुरु के जागने से प्रथम जागे और गुरु के सोने के पश्चात् सोवे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
गुरू - सन्निधौ गुरू के समीप रहते हुए सर्वदा सदा हीन + अन्न + वस्त्र + वेषः स्यात् अन्न - भोज्यपदार्थ, वस्त्र और वेशभूषा गुरू से सामान्य रखे च और अस्य प्रथमम् उत्तिष्ठेत् इस गुरू से पहले जागे च तथा परमं संविशेत् बाद में सोये ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(९) गुरु के समीप सदा उनसे घटिया भोजन, वस्त्र व वेष का व्यहार करे। गुरु के जागने से पहले जागे और उनके सोने के बाद सोये।
 
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