Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
शरीर, वाणी, बुद्धि, इन्द्रिय, मन सबको वश कर जोड़, गुरु को देखता हुआ गुरु के सामने स्थिर (खड़ा) रहे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
गुरू के सामने खड़े होने की अवस्था में ब्रह्मचारी शरीरं च वाचं च बुद्धि + इन्द्रिय + मनांसि एव च शरीर, वाणी, ज्ञानेन्द्रियों और मन को भी नियम्य वश में करके गुरोः मुखं वीक्षमाणः गुरू के सामने देखता हुआ प्रांज्जलिः हाथ जोड़कर तिष्ठेत् खड़ा होवे ।