Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस प्रकार एक मनुष्य के शरीर के चार हिस्से गुण-कर्म से अलग-अलग हैं, ऐेसे ही सारे जगत् में मनुष्य जाति के चार विभाग गुण-कर्म से अलग-अलग हैं। जिस तरह मुख वाले हिस्से में पाँचों ज्ञानेन्द्रिय और उपदेश करने के लिए वाणी कर्मेन्द्रिय है, ऐसे ही ब्राह्मण को उपदेश का काम दिया गया, बाहु अर्थात् क्षत्रिय को रक्षा का काम दिया गया, उरु अर्थात् वैश्य को व्यापार का एवं पाद अर्थात् शूद्र को सेवा का काम दिया गया।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(फिर उस परमात्मा ने) (लोकानां तु) प्रजाओं अर्थात् समाज की (विबृद्धयर्थम्) विशेष वृद्धि - शान्ति, समृद्धि एवं प्रगति के लिए (मुखबाहु - ऊरू - पादतः) मुख, बाहु, जंघा और पैर की तुलना के अनुसार क्रमशः (ब्राह्मणं क्षत्रियं वैश्यं च शूद्रम्) ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण को (निरवर्तयत्) निर्मित किया ।
टिप्पणी :
. १।३१ वें श्लोक की व्याख्या में कुल्लूकभट्ट ने पौराणिक - प्रभाव वश सृष्टि - क्रम से विरूद्ध एक अविश्वसनीय कल्पना की है । अर्थात् ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, बाहु से क्षत्रिय, जंघाओं से वैश्य तथा पैर से शूद्र पैदा हुआ । और इस मिथ्या कल्पना को बल देने के लिये यह भी लिख दिया कि ‘दैव्या च शक्त्या मुखादिभ्यो ब्राह्मणादिनिर्माणं ब्रह्मणों न विशंकनींय श्रुतिसिद्धत्वात्’ अर्थात् ब्रह्मा के मुखादि से ब्राह्मणादि की उत्पत्ति में किसी प्रकार की आशंका न करनी चाहिये । क्यों कि दिव्य - शक्ति से ऐसा भी सम्भव है और इसमें वेद का प्रमाण भी है । वस्तुतः वेद के ‘ब्राह्माणोऽस्य मुखमासीद्०’ इत्यादि मन्त्र के आलंकारिक वर्णनों को न समझकर ऐसी कल्पना की गई है । यहाँ शरीर की उपमा से ब्राह्मणादि वर्णों के विभाग तथा कर्मों को ही समझाया गया है । और यदि मुखादि से उत्पत्ति का क्रम माना जाये तो अनेक दोष आते हैं -- जैसे - १।१६,१९,२२ श्लोकों में जो मनुष्यादि की उत्पत्ति कही है, फिर यहाँ कहने की क्या आवश्यकता है क्या पूर्वकथित मानवादि की उत्पत्ति ब्राह्मणादि से भिन्न है ? उनको क्या वर्ण होंगे ? यदि मुखादि अवयवों से उत्पत्ति हुई , तो प्रथम तो परमात्मा का शरीर ही नहीं है, मुखादि अवयव कैसे हो सकते हैं । और दुर्जनतोष न्याय से अवयवों से उत्पत्ति मान भी लो तो मुख से उत्पन्न होने से ब्राह्मण गोलाकार, क्षत्रिय हाथ की भांति लम्बा , वैश्य उदर की तरह गोल - मटोल , शूद्र पैर की भांति ऊपर से मोटा नीचे से पतला लम्बा होना चाहिये । कुछ तो उत्पत्ति - भेद से इनकी बनावट में भेद होना चाहिये ? अतः मुखादि से उत्पत्ति की बात न तो बुद्धिसंगत है और न सृष्टिक्रम से अनुकूल । और जन्ममूलक वर्णव्यवस्था के पक्ष में यह भी दोष है कि ब्रह्मा के शरीर से ही उत्पन्न चारों, वर्णों का भेद ही क्यों माना जाये ? सभी को एक वर्ण का मानना चाहिये, चाहे वह मुख से हुआ, अथवा दूसरे अंगों से । क्यों कि सब की उत्पत्ति एक ब्रह्मा से मानी गई है । अतः इस प्रकार की व्याख्या सर्वथा असंगत है ।
Comment By: ADMIN
नमस्ते eshwar sir जी
हम हमेशा अधुरा पढ़कर पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर उत्सुकतावश कमेंट दे देते है परन्तु उस विषय को पूरा पढने का कष्ट नही करते, ऐसे व्यवहार पर क्रोध और हंसी दोनों ही आ जाते है
आपने यहाँ "टिप्पणी" को नहीं पढ़ा
आपका जवाब वहां पर है की यह कैसे सम्भव है
उसे पढ़िए और अपनी सोच बदलिए
धन्यवाद
Comment By: ramkrishna
Mai braman,kshtriy vaishya,ya shudra ka hu mujhe is bat ka koi sankoch nahi par bramha ne 4varn banaye our usme jatibhed manana sabse pahale kisne kiya