Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो ऐसे घर न हों तो सारे गाँव में मौन धारण कर और इन्द्रियों को वश कर भिक्षा माँगें। किन्तु पापियों का घर त्याग दें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
पूर्वोक्तानाम् असंभवे पूर्व (२।१५८-१५९) कहे हुए घरों के अभाव में सर्व वा अपि ग्रामं चरेत् सारे ही गांव में भिक्षा मांग ले तु किन्तु प्रयतः प्रयत्नपूर्वक वाचं नियम्य अपनी वाणी को नियन्त्रण में रखता हुआ अभिशस्तान् पापी व्यक्तियों को वर्जयेत् छोड़ देवे अर्थात् पापी लोगों के सामने किसी भी अवस्था में भिक्षा - याचना के लिए वाणी न खोले ।