Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गुरु के कुल में, जाति के कुल में, भाई के कुल से भिक्षा न माँगें। यदि कहीं भिक्षा न मिले तो पूर्व पूर्व (प्रथम प्रथम) को त्याग कर दूसरे दूसरे से माँगें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
ब्रह्मचारी गुरोः कुले न भिक्षेत गुरू के परिवार में भिक्षा न मांगे ज्ञाति कुल - बन्धुषु न सम्बन्धियों के परिवारों तथा मित्रों - धनिकों में भी भिक्षा न मांगे अन्यगेहानां अलाभे तु अन्य घरों से यदि भिक्षा न मिले तो पूर्व - पूर्व विवर्जयेत् पूर्व - पूर्व घरों को छोड़ते हुए भिक्षा प्राप्त कर ले अर्थात् पहले मित्रों, परिचितों या घनिष्ठों के घरों से भिक्षा मांगे, वहां न मिले तो सम्बन्धियों में, वहां भी न मिले तो गुरू के परिवार से भिक्षा मांग सकता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु गुरु के कुल, स्वीय ज्ञातिकुल और बन्धुओं से भिक्षा न मांगे। किन्तु यदि दूसरे घरों से भिक्षा प्राप्त न हो तो पहले पहले का त्याग करे। अर्थात् पहले बन्धुओं से मांगे। यदि वहां भी भिक्षा न मिले तो ज्ञातिकुल से भिक्षा ले। और वहां भी न मिलने पर अन्त में गुरु के कुल से भिक्षा ग्रहण करे।