Manu Smriti
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उदकुम्भं सुमनसो गोशकृन्मृत्तिकाकुशान् ।आहरेद्यावदर्थानि भैक्षं चाहरहश्चरेत् ।2/182

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जल का घड़ा, फूल, गोबर मिट्टी, कुश इन सब को आवश्यकतानुसार लावें। और नित्य भीख माँगकर भोजन करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
उदकुम्भम् पानी का घड़ा सुमनसः फूल गोशकृत् गोबर मृत्तिका मिट्टी कुशान् कुशाओं को यावत् अर्थानि जितनी आवश्यकता हो उतनी ही आहरेत् लाकर रखे च और भैक्षम् भिक्षा भी अहः अहः चरेत् प्रतिदिन - प्रतिदिन मांगे ।
 
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