Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
उबटन का जल, जूता, छतरी, काम, क्रोध, लोभ, नाचना, गाना बजाना।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
अभ्यंगम् अंगों का मर्दन - बिना निमित्त उपस्थेन्द्रिय का स्पर्श अक्ष्णोः च अंज्जनम् आंखों में अंच्जन उपानत् - छत्र - धारणम् जूते और छत्र का धारण कामं क्रोधं लोभं च काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, शोक, ईष्र्या, द्वेष चकार से मोह, भय, शोक, ईष्र्या, द्वेष का ग्रहण किया है । च और नत्र्तनं गीत - वादनम् नाच, गान, बजाना ‘इनको भी छोड़ देवे’ यह पूर्वश्लोक से अनुवृत्ति आती है ।
(स० प्र० तृतीय समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(४) ब्रह्मचारी उबटन लगाना, आँखों में काजल लगाना, जूता पहिनना, छाता लगाना, काम, क्रोध, लोभ, नाचना, गाना और बजाना, इनको छोड़ देवे।