Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
नित्य स्नान कर शुचि (शुद्ध पवित्र) हो देवर्षि पितृ-तपर्ण करके देवताओं का पूजन करें और अग्नि में हवन करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
ब्रह्मचारी नित्यम् प्रतिदिन देव - ऋषि - पितृ - तर्पणम् विद्वानों, ऋषियों, बुजुर्गों की प्रसन्नताकारक कार्यों से तृप्ति - संतुष्टि च और स्नात्वा शुचिः स्नान करके, शुद्ध होकर देवता - अभ्यर्चनम् परमात्मा की उपासना च तथा समिधा - आधानम् अग्निहोत्र भी कुर्यात् किया करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(२) नित्य स्नान कर शुद्ध हो विद्वानों ऋषियों और आचार्यादि पितरों की सेवा, देवाधिदेव प्रभु की पूजा और अग्निहोत्र करे।