Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ब्रह्मचारी गुरुकुलं वास कर इन्द्रिय-निग्रह (इन्द्रियों को वश में) करके अपने तप की उन्नति के हेतु निम्नलिखित विधि से कार्य करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. गुरौ वसन् गुरू के समीप अर्थात् गुरूकुल में रहते हुए ब्रह्मचारी ब्रह्मचारी आत्मनः तपोवृद्धयर्थम् अपने तप की वृद्धि के लिये इन्द्रियग्रामं सन्नि - यम्य इन्द्रियों के समूह (२।६४-६७) को वश में करके इमान् तु नियमान् सेवेत इन आगे वर्णित नियमों का पालन करे ।