Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो ब्राह्मण वेद का पढ़ना त्याग कर शास्त्रों के अध्ययन में परिश्रम करता है वह जीवन पर्यनत अपने कुल सहित शूद्र भाव को प्राप्त होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यः द्विजः जो ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वेदम् अनधीत्य वेद को न पढ़कर अन्यत्र श्रमं कुरूते अन्य शास्त्र में श्रम करता है सः वह जीवन् एव जीवता ही सान्वयः अपने वंश के सहित शूद्रत्वं गच्छति शूद्रपन को प्राप्त हो जाता है ।
(सं० वि० वेदारम्भ सं०)
टिप्पणी :
(आशु) शीघ्र ही....................
‘‘जो वेद को न पढ़ के अन्यत्र श्रम किया करता है, वह अपने पुत्र - पौत्र सहित शूद्रभाव को शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है ।’’
(स० प्र० तृतीय समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो द्विज ब्रह्मचारी वेद को न पढ़कर अन्य शास्त्र (अनार्ष सांप्रदायिक ग्रंथ) में श्रम करता है वह जीता हुआ ही, अर्थात् इसी जन्म में अपने पुत्रों सहित शूद्रपन को प्राप्त हो जाता है।