Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सबसे शिक्षा पय्र्यनत परम तप वह करता है जो माला पहने हुए बलानुसार नित्य वेद को पढ़ता है (अर्थात् ब्रह्मचारी को माला पहनाना वर्जित है, अतः वर्जित कार्य करने पर भी यदि वेद को पढ़ा करे तो वह भी तप ही है।)
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. यः द्विजः जो द्विज स्त्रग्वी - अपि माला धारण करके (३।३) अर्थात् गृहस्थी होकर भी अन्वहम् प्रतिदिन शक्तितः स्वाध्यायम् अधीते पूर्ण शक्ति से अर्थात् अधिक से अधिक प्रयत्नपूर्वक वेदों का अध्ययन करता रहता है (सः) वह आ ह एव निश्चय ही नखाग्रेभ्यः पैरों के नाखून के अग्रभाग तक अर्थात् पूर्णतः परमं तपः तप्यते श्रेष्ठ तप करता है ।