Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
द्विजोत्तमः द्विजोत्तम अर्थात् ब्राह्मणादिकों में उत्तम सज्जन पुरूष सदा तपः तप्स्यन् सर्वकाल तपश्चर्या करता हुआ वेदम् एव अभ्यस्येत् वेद का ही अभ्यास करे हि जिस कारण विप्रस्य ब्राह्मण वा बुद्धिमान् जन को वेदाभ्यासः वेदाभ्यास करना इह इस संसार में परं तपः उच्यते परम तप कहा है ।
(सं० वि० वेदारम्भ सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
एवं, उत्तम ब्रह्मचारी को चाहिए कि वह तप तपने की इच्छा करता हुआ सदा वेद का ही अभ्यास करे। क्योंकि बुद्धिमान् का वेदाभ्यास करना ही परम तप है।