Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. द्विजन्मा द्विजमात्र को विधिचोदितैः तपोविशेषैः च विविधैः व्रतैः शास्त्रों में विहित विशेष तपों ब्रह्मचर्यपालन, प्राणायाम, द्वन्द्वसहन आदि और विविध व्रतों (२।१४९-१९४ में प्रदर्शित) का पालन करते हुए कृत्स्नः वेदः सम्पूर्ण वेदज्ञान को सरहस्यः रहस्य पूर्वक अर्थात् गूढार्थज्ञान - चिन्तनपूर्वक अधिगन्तव्यः अध्ययन करके प्राप्त करना चाहिए ।