Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
अनेन क्रमयोगेन इसी प्रकार से उपर्युक्त निर्देशों के अनुसार संस्कृतात्मा द्विजः कृतोपनयन द्विज कुमार और ब्रह्मचारिणी कन्या शनैः धीरे - धीरे ब्रह्माधिगमिकं तपः वेदार्थ के ज्ञानरूप उत्तम तप को संचिनुयात् बढ़ाते चले जायें ।
(स० प्र० तृतीय समु०)
टिप्पणी :
(गुरौ वसन्) गुरू के समीप अर्थात् गुरूकुल में रहते हुए ....................................
वेदाध्ययन के लिए प्रयत्न करने का विधान एव उसका कारण तथा प्रशंसा -
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(१७) इस प्रकार से कृतोनयन द्विज ब्रह्मचारी गुरुकुल में निवास करता हुआ धीरे-धीरे वेदार्थ के ज्ञानरूप तपको बढ़ाता चले।