Manu Smriti
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यस्य वाङ्गनसी शुद्धे सम्यग्गुप्ते च सर्वदा ।स वै सर्वं अवाप्नोति वेदान्तोपगतं फलम् ।2/160

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिसकी वाणी और मन शुद्ध है सर्वदा माया से बचा हुआ है। वह वेदान्त के फल को पाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. यस्य वाड्मनसी जिस मनुष्य के वाणी और मन शुद्धे च सम्यग्गुप्ते सर्वदा शुद्ध तथा सुरक्षित सदा रहते हैं सः वै वही सर्वं वेदान्तोपगतं फलं प्राप्नोति सब वेदान्त अर्थात् सब वेदों के सिद्धान्तरूप फल को प्राप्त होता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि जिस ब्रह्मचारी के वाणी और मन शुद्ध तथा सद सुरक्षित रहते हैं, वही सब वेदान्त, अर्थात् वेदों के सिद्धान्तरूप, फल् को प्राप्त करता है।
 
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