Manu Smriti
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यथा काष्ठमयो हस्ती यथा चर्ममयो मृगः ।यश्च विप्रोऽनधीयानस्त्रयस्ते नाम बिभ्रति ।2/157

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
काठ का हाथी चमड़े का मृग (हिरन), मूर्ख ब्राह्मण यह तीनों नाम मात्र को हैं। कुछ कार्य नहीं कर सकते।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यथा काष्ठमयः हस्ती जैसे काठ का कठपुतला हाथी, वा यथाचर्ममयः मृगः जैसे चमड़े का बनाया हुआ मृग हो यः च अनधीयानः विप्रः वैसे बिना पढ़ा हुआ विप्र अर्थात् ब्राह्मण वा बुद्धिमान् जन होता है ते त्रयः नाम बिभ्रति उक्त वे हाथी, मृग और विप्र तीनों नाम मात्र धारण करते हैं । (सं० वि० वेदारम्भ सं०)
टिप्पणी :
‘‘जो विद्या नहीं पढ़ा है वह जैसा काठ का हाथी, चमड़े का मृग होता है, वैसा अविद्वान् मनुष्य जगत् में नाम मात्र मनुष्य कहाता है ।’’ (स० प्र० दशम समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो विद्या नहीं पढ़ा वह जैसा काठ का हाथी वा चमड़े का मृग होता है वैसा जगत् में नाममात्र का मनुष्य होता है। अतः, ब्रह्मचारी को दिल लगा कर विद्या अवश्य पढ़नी चाहिए।
 
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